Nirjala Ekadashi Katha: सनातन परंपरा में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना जाता है। हर साल कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं लेकिन इनमें से सबसे अधिक पुण्य फलदायी और कठिन मानी जाती है निर्जला एकादशी।
यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और इस वर्ष यह तिथि 6 जून 2025 को मनाई जा रही है।
इस विशेष दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और व्रती पूरे दिन जल-अन्न का त्याग करते हैं।
लेकिन इस उपवास की आध्यात्मिक सफलता तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक कि Nirjala Ekadashi Katha का श्रवण या पाठ न किया जाए। यही कारण है कि यह व्रत सिर्फ तपस्या नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और कथा के माध्यम से मोक्ष की ओर एक कदम है।
भीमसेन से जुड़ी है Nirjala Ekadashi Katha
इस एकादशी व्रत की कथा महाभारत के पराक्रमी योद्धा भीमसेन से जुड़ी हुई है जिसे पौराणिक साहित्य में भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
कथा के अनुसार एक समय भीम ने ऋषि वेदव्यास से निवेदन किया कि वह अपने भाइयों की तरह हर महीने दो बार एकादशी का व्रत नहीं रख पाता, क्योंकि उसका शरीर भोजन के बिना कमजोर हो जाता है।
इस पर ऋषि वेदव्यास ने उन्हें एक उपाय बताया उन्होंने कहा कि यदि भीम पूरे वर्ष की सभी 24 एकादशियों का पुण्य फल एक साथ पाना चाहते हैं, तो उन्हें केवल ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी, यानी निर्जला एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से करना होगा।
इस व्रत में दिनभर जल और अन्न का पूर्ण रूप से त्याग करना होता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु का पूजन और Nirjala Ekadashi Katha का पाठ या श्रवण करने से व्रत पूर्ण माना जाता है।
Nirjala Ekadashi का महत्व और फल
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है, उसे वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही
- पापों से मुक्ति मिलती है
- मोक्ष की प्राप्ति होती है
- रोग, दुख और दुर्भाग्य दूर होते हैं
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है
यही कारण है कि इस व्रत को करने वालों की संख्या हर वर्ष लगातार बढ़ रही है, भले ही यह उपवास शारीरिक रूप से कठिन हो।
कैसे करें Nirjala Ekadashi की पूजा
इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। घर या मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर, तुलसी दल, पंचामृत, फूल और मौसमी फल अर्पित किए जाते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और Nirjala Ekadashi Katha का पाठ इस पूजा का मुख्य अंग होता है।
पूरे दिन न केवल अन्न बल्कि जल का भी त्याग करना होता है, इसलिए इसे “निर्जला” एकादशी कहा जाता है। अगले दिन यानी द्वादशी को व्रत का पारण जल ग्रहण करके और ब्राह्मण या जरूरतमंदों को दान देकर किया जाता है।
Nirjala Ekadashi 2025 की तारीख और शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 06 जून 2025 को देर रात 02:15 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 07 जून 2025 को सुबह 04:47 बजे
इसलिए इस वर्ष Nirjala Ekadashi का व्रत 6 जून को रखा जा रहा है। पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जा सकता है।
व्रत करने से पहले ध्यान रखें ये बातें
- शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति केवल फलाहार या जलाहार कर सकता है
- मन, वाणी और कर्म से पवित्र रहना अनिवार्य है
- अनावश्यक विवाद, क्रोध, तामसी भोजन और आलस्य से बचना चाहिए
- कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है, इसलिए Nirjala Ekadashi Katha का पाठ जरूर करें
निर्जला एकादशी न केवल शरीर के संयम की परीक्षा है बल्कि आत्मा की शुद्धता का उत्सव भी है। जब व्रत के साथ कथा जुड़ती है तो वह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं रह जाता बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है। इस एक दिन के व्रत से पूरे वर्ष का पुण्य मिल सकता है तो क्यों न इसे पूरी श्रद्धा से करें?
यदि आपने आज व्रत रखा है तो पूजा में ज़रूर Nirjala Ekadashi Katha का पाठ करें और प्रभु श्रीहरि विष्णु की कृपा पाएं।